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मुंशी प्रेमचंद जी की पुण्यतिथि पर परिसंवाद आयोजित

नागपुर, 9 अक्टूबर. हिंदी पत्रकार संघ मध्य भारत और महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, नागपुर के संयुक्त तत्वावधान में कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की पुण्यतिथि के उपलक्ष में कल यहॉं एक परिसंवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

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कार्यक्रम में मणिकांत सोनी, डॉ. सागर खादीवाला, नरेंद्र परिहार, , रीमा दीवान चड्ढा, डॉ. शरद सुनेरी जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों व विचारकों के साथ-साथ विपाशा गजवानी, भाग्यश्री पांडे व विशाल खर्चवाल आदि ने मुंशी प्रेमचंद के व्यक्तित्व व कृतित्व पर अपने विचार रखे.

कार्यक्रम के अध्यक्ष व दैनिक भास्कर, नागपुर के संपादक मणिकांत सोनी ने अपने उद्बोधन में कहा कि वे एक पत्रकार हैं, इस नाते प्रेमचंद जी के पत्रकार वाले पक्ष को आदर्श व अनुकरणीय मानते हैं. उन्होंने अपने पत्रकारीय लेखन में वह सब लिखा, जो उन्होंने अपने परिवार, गॉंव,अंचल और देश में देखा, महसूस किया. उनकी पत्रकारिता के कुछ अंश पढ़कर यह जाना जा सकता है कि एक पत्रकार के रूप में प्रेमचंद ने हर उस चीज पर प्रहार किया, जो देश व समाज के लिए घातक हो सकती थी.

रीमा चड्ढा ने बताया कि मुंशी प्रेमचंद ने स्त्री शक्ति का जो चित्रण उस दौर में किया, आज के दौर में भी वह इतनी ही प्रासंगिक है. इसी प्रकार उन्होंने जुए, शराब और बुरी आदतों के विरूद्ध भी अपनी रचनाओं के माध्यम से काफी जोरदार प्रहार किया, जिनसे आज भी सीख ली जा सकती है.

डॉ. शरद सुनेरी ने नमक का दारोगा उल्लेख करते हुए कहा कि जिस तरह आजकल हम आए दिन भ्रष्ट लोगों के घरों में छापे मारे जाने पर बरामद नोटों के भंडार की खबरें पढ़ते हैं, यह कहानी याद आ जाती है कि इसकी शिक्षाओं को हमें अपने जीवन में उतारने की कितनी जरूरत है.

डॉ. सागर खादीवाला ने कहा कि इस दौर में प्रेमंचद जी के साहित्य और उनके स्वयं के व्यक्तित्व, दोनों की ही प्रासंगिकता बहुत गहरे अर्थ रखती है. प्रेमंचद जी ने जो लिखा, उसे अपने वास्तविक जीवन और आचरण में भी अपनाया, जिसकी वजह से उनके लेखन के साथ-साथ उनका व्यक्तित्व भी बहुत अनुकरणीय हो जाता है. उनकी अधिकतर रचनाओं में आपको कई बार महसूस होगा कि जैसे वो स्वयं से ही बात कर रहे हों. ये उनके वे विचार हैं, जिनकी प्रासंगिकता सदियों बाद भी बनी रहेगी.

नरेंद्र परिहार ने प्रेमचंद जी की कविता, ‘अच्छे ने अच्छा, बुरे ने बुरा जाना मुझे/क्योंकि जिसकी जितनी जरूरत थी, उसने उतना ही पहचाना मुझे… का उल्लेख करते हुए, उनका एक अल्पज्ञात कवि रूप श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत किया.

अन्य उल्लेखनीय वक्ताओं में बिपाशा गजनानी ने गोदान के माध्यम से और विशाल खर्चवाल ने पूस की रात कहानी का उल्लेख करते हुए प्रेमचंद द्वारा किए गये किसानों की स्थिति के हृदयस्पर्शी चित्रण को आज के किसानों की स्थिति के एकदम करीब बताया तो भाग्यश्री पांडे ने ईदगाह कहानी का स्मरण करते हुए बताया कि दशकों पहले लिखी गई यह कहानी आज के दौर के बच्चों को भी अपने परिवार के बड़ों के प्रति संवदेनशील बनने की शिक्षा देती है.

‘आज के दौर में प्रेमचंद की प्रासंगिकता’ विषय पर आयोजित यह कार्यक्रम महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा भवन में सम्पन्न हुआ. आनंद निर्वाण, स्थानीय संपादक, दैनिक भास्कर, नागपुर के मार्गदर्शन में आयोजित इस परिसंवाद कार्यक्रम में विशेष अतिथि वरिष्ठ कवि व साहित्यकार डॉ. सागर खादीवाला, मुख्य अतिथि विश्वजीत भगत, अध्यक्ष, राजस्थानी ब्राह्मण समाज व संपादक ‘गौरव गरिमा’ थे. कार्यक्रम का संचालन सत्येंद्र प्रताप सिंह ने किया.

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में नगर के साहित्यकार व साहित्य प्रेमी उपस्थित थे, जिनमें महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा के अध्यक्ष अजय पाटिल, कृष्ण नागपाल, शशिवर्द्धन शर्मा ‘शलभ’, सूरज तेलंग, माधुरी मिश्रा, रवि गुडाधे, अजय पांडे, डाॅ शीला भार्गव ,डाॅ आरती सिंह एकता, टीकाराम साहू , रवींद्र मिश्रा आदि की मुख्य उपस्थिति रही.

हिंदी पत्रकार संघ मध्य भारत की ओर से अध्यक्ष नंदकिशोर पुरोहित व महासचिव श्री मनीष सोनी ने समस्त अतिथिगण व उपस्थितों का स्वागत किया व आभार प्रदर्शन संदीप अग्रवाल द्वारा किया गया.

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