Ab life ke aur kareeb

सलाम जंगल

हर तन—बदन पुकारे, कोई तो धूप उतारे / सूखा हर एक बादल, प्यासा तमाम जंगल… धरती कोई भी ओढ़ें, अपनी जड़ें न छोड़ें/ करता है बस उन्हीं को, दिल से सलाम जंगल. ” वरिष्ठ कवि श्री सूर्यभानु गुप्त की मशहूर नज्म ‘जंगल’ की याद दिलाने वाला यह नजारा है, उत्तराखंड की एक सड़क के किनारे रास्ते को छाया से ढके रखने वाली चीड़ वृक्ष श्रंखला का.

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