भक्तों की भीड़
आस्था और व्यवस्था में अगर संतुलन न हो तो श्रद्धा किस तरह समस्या में बदल जाती है, इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण है, दिल्ली-लखनऊ हाइवे पर स्थित, राजधानी से लगभग सौ किलोमीटर दूर स्थित ब्रजघाट, जिसे उत्तर प्रदेश की हर की पौड़ी के रूप में विकसित करने के लिए वर्षों से कवायद जारी है. लेकिन, समस्या है इस जगह पुल पर से होकर जाने वाला यातायात, जिसे व्यवस्थित करने की बजाय अक्सर भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है और इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है, उन यात्रियों को जो सोमवार या शनीचर को पड़ने वाली अमावस्या या पूर्णिमा के दिन इस मार्ग से गुजरते हैं. कल बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर ऐसा ही नजारा यहॉं देखने को मिला, जिसमें बेचारे यात्री भयंकर गरमी और उमस के बीच सुबह पॉंच बजे से शाम पॉंच बजे तक जाम में ही फँसे रहे. रही-सही कसर पूरी कर दी, यहॉं से दो-ढाई किलोमीटर दूर के टोल नाके ने, जिसे सिर्फ अपनी कमाई से मतलब था. किसी का प्लेन छूटा, किसी की ट्रेन, कोई बीमार पड़ा, कोई बैठा-बैठा खंभा नोचता रहा.
- संदीप अग्रवाल